in

महाशिवरात्रि पर निबंध – Mahashivratri Essay in Hindi

हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक महाशिवरात्री (शिवरात्रि) का पर्व भगवान शिव की पूजा-आराधना का पर्व है। हर साल फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व शरद ऋतु की समाप्ति के बाद (मार्च महीने) बसंत ऋतु में आता है। 

पुराणों के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ हुआ था जिसका उदय भगवान शिव की विशाल शिवलिंग से हुआ था। ऐसी भी मान्यता है की इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। साल में कुल 12 शिवरात्रि आतीं हैं लेकिन इन सभी में महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है

शिवरात्रि के दिन शिवभक्त एवं शिव में श्रद्धा रखने वाले लोग व्रत-उपवास रखते हैं और विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना करते हैं।

शिवरात्रि – शिव की महिमा का दिन 

महाशिवरात्रि का दिन अर्थात भगवान शिव की पूजा-आराधना करने का दिन। इस अवसर शिव मंदिरों में सुबह से ही शिव भक्तों की लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलतीं हैं। शिव की पूजा करने के लिए भक्त सुबह से ही मंदिरों में एकत्र हो जाते हैं। 

मंदिरों में भगवान शिव की शिवलिंग पर जल और दूध से अभिषेक किया जाता है। शिवलिंग पर बेल के पत्ते चढ़ाने का विशेष महत्व है।  सुबह से ही ॐ नमः शिवाय के जाप से वातावरण गूंज उठता है। मंदिरों में शिव की महिमा के गीत,  श्लोक और मंत्रों का जाप किया जाता है। 

शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की बारह ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का बड़ा महत्व होता है। इस दिन शिव की बारह ज्योतिर्लिंग के पवित्र स्थलों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। 

इस दिन उपवास रखने का बहुत महत्व होता है। महाशिवरात्रि के दिन भांग की प्रसाद का विशेष महत्व होता है, सभी मंदिरों में भांग का प्रसाद बांटा जाता है। 

शिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथाएँ 

महाशिवरात्रि से जुड़ीं कई पौराणिक कथाएँ शिवरात्रि की महिमा का वर्णन करती हैं। 

समुद्र मंथन की कथा 

दुर्वशा ऋषि के श्राप के कारण सभी देवता शक्तिहीन हो चुके थे जिसके कारण तीनों लोकों पर राजा बली का आधिपत्य स्थापित हो गया था। सभी देवता श्री विष्णु के पास गए और इस संकट से निवारण का मार्ग बताने के लिए प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने देवताओं को असुरों से मित्रता कर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया और कहा कि समुद्र मंथन से जो अमृत निकलेगा उसे पीकर आप सभी देवता अमर हो जाओगे और असुरों को पराजित कर पाओगे। 

सभी देवताओं ने असुरों से मित्रता कर ली और समुद्र मंथन करने का निर्णय हुआ। समुद्र को मथने के लिए मन्दराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी नाग को नेती बनाया गया। समुद्र मंथन के समय कई बहुमूल्य संपदाएँ बाहर निकलीं। 

इसी बीच समुद्र मंथन से कालकूट नमक विष बाहर निकला जो की पूरी शृष्टि के लिए संकट बन सकता था। सभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने उस कालकूट विष को पीकर अपने गले में धारण कर लिया । गले में विष धारण करने के कारण उनका गला नीला पड़  गया और भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। उसी समय से भगवान शिव की महिमा का पर्व महाशिवरात्रि को मनाया जाता है। 

शिकारी की कथा 

भूख से विलाप करते हुये बच्चों के लिए भोजन की खोज में चित्रभानु नामक शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए निकल पड़ा। सौभाग्य से उस दिन महाशिवरात्रि का ही दिन था। 

शिकार की तलाश में शिकारी एक बेलपत्र के वृक्ष के ऊपर चढ़ गया और शिकार की प्रतीक्षा करने लगा। प्रतीक्षा करते हुये वह शिकारी बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था, वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित थी और शिकारी के फेंके हुए बेल के पत्ते उस शिवलिंग पर गिर रहे थे। 

शिकार की प्रतीक्षा करते हुये काफी समय बाद शिकारी को एक मृग दिखाई दिया। उसने जैसे ही अपना तीर उस मृग को मारने के लिए निकाला तो मृग ने उसे कहा की – “ हे शिकारी मैं गर्भवती हूँ, मुझे जाने दो।” यह सुनकर शिकारी को दया आ गयी और उस मृग को जाने दिया। 

फिर से वो शिकारी शिकार की प्रतीक्षा करता हुआ बेल के पत्ते नीचे फेंकने लगा। कुछ समय बाद एक और मृग अपने बच्चों के साथ वहाँ दिखाई दिया। शिकारी ने विलंब किए बिना तीर कमान चढ़ा ली, तभी वह मृग शिकारी से प्रार्थना कर बोला कि – “हे पारधी!’ मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।” इस बार भी शिकारी को दया आ गयी और उसने उस मृग को जाने दिया। 

इस प्रकार शिकार की प्रतीक्षा करते हुये शाम हो गयी और शिकारी के भूखे रहने से उसका उपवास भी हो गया था। शिकारी अभी भी बेल के पत्र अंजाने में उस शिवलिंग पर फेंक रहा था।

इसी समय एक मृग शिकारी को आते हुये दिखा, उसने इस बार निश्चय कर लिया कि अब वह इस मृग का शिकार अवश्य करेगा। उसने अपना तीर चढ़ाया और मृग कि ओर चलाने के लिए हाथ उठाया। तभी उस मृग ने शिकारी से प्रार्थना कि – हे पारधी, यदि तुमने मुझसे पहले यहाँ आयें मृगों का वध कर दिया है तो मुझे भी मार डालो और यदि तुमने उन्हें जीवन दान दिया है तो कृपा कर मुझे कुछ समय जीवन दान दे दो ताकि मैं भी अपने बच्चो से मिल सकूँ, उसके पश्चात तुम मेरा वध कर देना। 

उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। 

तभी वहाँ भगवान शिव प्रकट हुये और आत्मग्लानि से रो रहे शिकारी से बोले – “हे पारधी आज शिवरात्रि है और तुमने अंजाने में इस शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ाकर मेरी पूजा की है और व्रत भी रखा है। इसलिए आज से इस संसार में जो भी मुझपर शिवरात्रि के दिन बेल पत्र चढ़ाएगा और व्रत रखेगा उस पर मेरी विशेष कृपा होगी। 

उसी समय से महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखना और भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के बड़ा महत्व है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस निबंध | International Day of the Girl Child Hindi essay

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस निबंध | International Day of the Girl Child Hindi essay

गांधी जयंती (2 अक्टूबर) पर निबंध Hindi essay on Gandhi Jayanti

गांधी जयंती (2 अक्टूबर) पर निबंध | Hindi essay on Gandhi Jayanti