बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ हिन्दी निबंध | Beti Bachao Beti Padhao Essay in hindi for Class 1 to 12
समाज में हमारी बेटियों की स्थिति में सुधार आए और उन्हें भी लड़कों की तरह समान हक मिले इसलिए बेटियों को पढ़ाओ और बेटियों को बचाओ – इस पहल की शुरुआत हुई है जो की एक राष्ट्रव्यापी अभियान बन चुका है।
यहाँ हम छात्रों के लिए बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ पर निबंध लेकर आए हैं जो परीक्षा की तैयारी करने में मदद रूप होगा।
अनुक्रम
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (150 शब्द)
देश के कई राज्यों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है और इस वजह से समाज में बेटियों के प्रति अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं। 25 जनवरी 2015 को देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने बेटियों की सुरक्षा के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पहल का मुख्य उद्देश्य कन्या भ्रूण हत्या को रोकना, बच्चियों के आस्तित्व और सरंक्षण को सुनिश्चित करना, लड़कियों की शिक्षा और समाज में समान भागेदारी मिले यह सुनिश्चित करना है।
देश की कई राज्य ऐसे हैं जहां बेटियों का लिंग अनुपात बहुत कम है जिनमें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, बिहार और दिल्ली शामिल हैं। 2011 की जनगणना जब की गयी तो पाया गया की इन राज्यों में प्रति 1000 लड़कों के सामने सिर्फ 943 लड़कियां हैं जो एक चिंता का विषय है।भारत सरकार ने बेटियों की घटती संख्या को गंभीरता से लिया है और एक पहल शुरू की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ निबंध (300 शब्द)
कन्या भ्रूण हत्या देश की सबसे बड़ी समस्या है और आज इसके विपरीत परिणाम देश के कई राज्यों में देखने को मिल रहे हैं। आज भी गर्भ में ही बेटियों को मार दिया जाता है, बेटियों को समान अधिकार नहीं मिलते उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता है। बेटियों के प्रति जो समाज का रवैया है उसी सोच को बदलने के लिए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक पहल की – बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का यही मूल उद्देश्य है की कन्या भ्रूण हत्या को जड़ से खतम करना, बेटियों का भविष्य सुरक्षित करना और समाज मे उन्हें सभी अधिकार देना।
देश के कुछ राज्यों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या मे लगातार गिरावट देखने को मिल रही है और इसका खुलासा 2011 की जनगणना में देखने को मिला। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, बिहार और दिल्ली जैसे राज्यों में आज भी लोग लिंग की जांच कर बेटियों को पेट में ही मार देते हैं। बेटे की चाह में या बेटी बोझ है ऐसी मानसिकता वाले लोग इतना बड़ा अपराध कर रहे हैं और इसी वजह से लगातार बेटियों की संख्या कम हो रही है।
भारत सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ संयुक्त रूप से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय पहल है।
सरकार को यह उम्मीद है की 2021 तक अगर इसी तरह से यह पहल काम करती रही तो निश्चित रूप मे लड़कों और लड़कियों की संख्या में जो असमानता है उसमें भारी गिरावट आएगी।
एक बात समाज के लोगों को भी सोचनी चाहिए की अगर बेटियाँ ही नहीं होंगी तो इस दुनिया का आस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। जितना अधिकार बेटों का है उतना ही बेटियों का भी है, उन्हें भी समाज में बराबर का हक मिलना चाहिए।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (500 शब्द)
बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ यह भारत सरकार की एक निजी पहल है जिसका मुख्य उद्देश्य बेटियों के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना और बेटियों के लिए कल्याणकारी सेवाओं का प्रारम्भ करना। इस अभियान के लिए सरकार ने 100 करोड़ का प्रारम्भिक बजट भी घोषित किया। यह अभियान मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, बिहार और दिल्ली राज्यों पर केन्द्रित किया गया है।
जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, 2011 में लड़कों की 1000 संख्या के सामने लड़कियों की संख्या सिर्फ 943 थी। लगातार बेटियों की घटती संख्या एक चिंता का विषय है और सरकार ने इस पर अपनी गंभीरता दिखाई और 2015 में अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर बोलते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मादा भ्रूण हत्या के उन्मूलन की मांग की और भारत के नागरिकों से सुझाव आमंत्रित किए।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना 22 जनवरी 2015 के दिन श्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य बाल यौन अनुपात में गिरावट के मुद्दे को हल करना है और यह संयुक्त रूप से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय पहल है।
इस पहल के प्रचार-प्रसार के लिए ओलंपिक कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक को बीबीबीपी के लिए ब्रांड एंबेसडर बनाया गया था।
देश के कुछ राज्य आज भी ऐसे हैं जहां कन्या-भ्रूण हत्या का प्रमाण लगातार बढ़ा है। बेटों की चाह होने की वजह से और बेटियों को शादी मे ढेर सारा दहेज देना पड़ता है, बेटी बोझ है – ऐसी सोच के कारण बच्चियों को उनके जन्म से पहले ही लिंग की जांच कर पेट में मार दिया जाता है।
अगर इसी तरह से बेटियों को पेट में ही मारना जारी रहा तो वो दिन दूर नहीं जब लड़कों की अपेक्षा समाज में लड़कियों की संख्या बेहद कम हो जाएगी। समाज मे बेटियों की घटती संख्या समाज में कई और समस्याओं को जन्म दे सकती है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान समाज के ऐसे ही लोगों की सोच पर चोट है जो बेटियों को एक बोझ समझकर पैदा होने से पहले ही मार देते हैं।
इस अभियान के तहत सरकार का लक्ष्य है की समाज में कन्या भ्रूण हत्या रुके और इसके लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। साथ ही साथ बेटियों को उचित शिक्षा और समान अधिकार मिलें यह भी इस अभियान के तहत सुनिश्चित किया गया है।
बेटी पढ़ाओ बेटो बचाओ अभियान को बड़े पैमाने पर पूरे देश में चलाया गया और इसका परिणाम भी देखने को मिला है। अभी हाल ही में बेटियों के जन्म के अनुपात में वृद्धि देखने को मिली है। सरकार का मानना है की 2021 तक देश की सभी राज्यों में लड़के और लड़कियों की संख्या में जो असमानता है उसमें काफी कमी आएगी।
समाज के लोगो की भी ज़िम्मेदारी है की वो बेटों की तरह ही अपनी बेटियों को भी समान अधिकार दें और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए आगे आयें। आज बेटियाँ बेटों से आगे हैं और वो हर काम करने में सक्षम हैं जो बेटे कर सकते हैं, अतः यह सोच बदलने की जरूरत है की बेटियाँ माँ-बाप पर बोझ होतीं है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (700 शब्द)
प्रस्तावना
आज भी भारत देश में बेटियों को पेट में ही मार दिया जाता है, उन्हें बोझ समझकर इस दुनिया में आने ही नहीं दिया जाता। दहेज जैसी रिवाजों की वजह से कोई बेटी नहीं चाहता क्यूंकी अगर बेटी हो गयी तो उसके विवाह में ढेर सारा दहेज देना पड़ेगा। यही नहीं समाज में लोगों के मन में बेटे की चाह ज्यादा होती है क्यूंकी बेटा ही उनके वंश को आगे बढ़ाएगा।
ऐसी सामाजिक सोच बेटियों के प्रति होने वाले भेदभाव को जन्म देती है और जन्म देती है एक ऐसी समस्या जिससे भारत के कई राज्य जूझ रहे हैं और वो समस्या है बेटियों की संख्या में लगातार गिरावट।
क्या है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
समाज में लोगों की सोच बेटियों के प्रति बदले यही सोच कर हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने विश्व बालिका दिवस के मौके पर 22 जनवरी 2015 को एक नारा दिया बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और इसके साथ ही इस अभियान की शुरुआत हुई।
देश में अभी भी कुछ राज्य ऐसे हैं जहां कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध होते हैं जिनमे उत्तरप्रदेश, हरियाणा, बिहार, मध्यप्रदेश,दिल्ली, उत्तराखंड और पंजाब मुख्य हैं। बेटियों को पेट में ही लिंग जांच कराकर मार दिया जाता है।
2011 की जनगणना में यह पाया गया की इन राज्यों में बेटों की संख्या की अपेक्षा बेटियों की संख्या में भारी गिरावट आई है, 1000 लड़कों के सामने 943 लड़कियों की संख्या थी। लड़कों और लड़कियों की संख्या मे इस असमानता को दूर करने के लिए और कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध को जड़ से खतम करने के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की गयी।
क्या है उद्देश्य
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की साझा पहल है और तीनों मंत्रालय इसके लिए कार्य कर रहे हैं।
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य है:
- बेटियों को लेकर जो लिंग भेदभाव होता है उसे दूर करना
- कन्या भ्रूण हत्या को जड़ से खतम करना।
- बेटियों का संरक्षण सुनिश्चित करना
- समाज में उन्हें समान शिक्षा और अधिकार मिले यह सुनिश्चित करना
इस अभियान को बड़े पैमाने पर सभी प्रभावित राज्यों में चलाया जा रहा है। सरकार ने इस पहल के लिए 100 करोड़ का बजट भी बनाया है जिसकी घोषणा 2015 में की गयी थी।
क्यूँ शुरू किया गया
जनगणना, 2011 में बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) में 0-6 साल के आयु वर्ग में प्रति 1000 लड़कों के सामने 918 लड़कियों के साथ महत्वपूर्ण गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई गयी है। देश के 640 जिलों में से 429 जिलों (देश के 2/3) में लड़कियों की संख्या में कमी पायी गयी।
लड़कियों की घटती संख्या यह गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि यह हमारे समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति को दर्शाती है और महिला सशक्तिकरण पर सवाल खड़ा करती है। यह समस्या यह भी दर्शाती है की किस तरह से समाज में बेटियों के साथ भेद भाव हो रहा है चाहे उनके जन्म को लेकर हो, शिक्षा को लेकर हो या उनके विकास को लेकर हो।
इस मानसिकता के खिलाफ, माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत में सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक के रूप में, बेटी बचाओ, बेटी पदो (बीबीबीपी) शुरू किया गया था।
समाज की भूमिका
इस अभियान को सफल बनाने के लिए समाज की भूमिका बहुत ही महत्व रखती है। समाज के लोगों को जागरूक करने की जरूरत है और उनकी बेटियों के प्रति सोच बदलने की जरूरत है। समाज के लोगों में जागृति लाने के लिए तरह तरह के कार्यक्रम इस अभियान के तहत चलाये जा रहे हैं।
इस अभियान के अब अच्छे परिणाम भी आए हैं और लोगों ने अपनी सोच को बदला है। जिन राज्यों में बेटियों की संख्या कम थी, आज वहाँ उसमे काफी बढ़ोत्तरी आई है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे
- बेटी को मत समझो भार, जीवन का हैं ये आधार
- हर घर की इसी में शान, बेटी का हो घर-घर सम्मान
- बेटी है तो कल है।
- लक्ष्मी का वरदान है बेटी, धरती पर भगवान है बेटी।
उपसंहार
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान तभी सफल हो सकता है जब पूरा समाज एक साथ खड़ा होकर सहकार करेगा। बेटियों को अच्छा जीवन देना, अच्छी शिक्षा देना, समान अधिकार देना और सम्मान देना यह हर माँ-बाप की ज़िम्मेदारी है। बेटों की चाह में हमें बेटियों को कभी नहीं भूलना चाहिए और उन्हें भी वही प्रेम और हक देना चाहिए जो बेटों को देते हैं।
Beta bachao abhiyaan par nibandh