बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ भाषण हिन्दी में | Hindi Speech on Beti Bachao – Beti Padhao
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ निबंध के बाद, यहाँ हम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर भाषण लेकर आए हैं। इस प्रकार के भाषण समाज में बेटियों के प्रति सोच को बदलने में काफी सहायक होते हैं।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ पर भाषण
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद,
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ- अभियान से आज हमें काफी हद तक अपनी बेटियों की स्थिति को सुधारने में मदद मिली है, लेकिन अभी भी यह पर्याप्त नहीं है। मन को बहुत बड़ी पीड़ा होती है कि जिस देश की महान संस्कृति, जिस देश की महान परम्पराएं, शास्त्रों में उत्तम से उत्तम बातें, वेद से विवेकानंद तक- सही दिशा में प्रबोधन, लेकिन क्या कारण है, वो कौन सी बुराई घर कर गई कि आज हमें अपने ही घर में बेटी बचाने के लिए हाथ-पैर जोड़ने पड़ रहे हैं, समझाना पड़ रहा है; उसके लिए सरकार को धन खर्च करना पड़ रहा है?
मेरी दृष्टि से किसी भी समाज के लिए इससे बड़ी कोई पीड़ा नहीं हो सकती। और कई दशकों से एक विकृत मानसिकता के कारण, एक गलत सोच के कारण, सामाजिक बुराइयों के कारण हमने बेटियों को ही बलि चढ़ाने का रास्ता चुन लिया। ये सुनते हुये बहुत कष्ट होता है की आज समाज में बेटों की तुलना में बेटियों की संख्या बहुत कम है। जब इस प्रकार की स्थिति खड़ी होती है तब समाज की क्या दुर्दशा होगी इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। स्त्री और पुरुष की समानता से ही ये समाज का चक्र चलता है, समाज की गतिविधि बढ़ती है।
कई दशकों से बेटियों को ये समाज नकारता रहा है, उन्हें पेट में मार दिया जाता था। उसी का नतीजा है कि समाज में एक असंतुलन पैदा हुआ। लेकिन अब हमें यह निश्चय करना होगा कि जितने बेटे पैदा होंगे उतनी ही बेटियां भी पैदा होंगी। जितने बेटे पलेंगे उतने ही बेटियां पलेंगी। बेटा-बेटी, दोनों एक समान; इस भाव को ले करके अगर चलेंगे तो आने वाले सालों में हम बेटियों की स्थिति सुधार सकते हैं।
बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ को हम सभी को एक जन-आंदोलन बनाना होगा। हर घर से यह आवाज आनी चाहिए की हमें बेटी चाहिए। देश की सभी राज्य सरकारों को इसके लिए अपने अपने राज्यों में सामाजिक आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है।
बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ अभियान से कुछ ही सालों में अच्छा परिणाम देखने को मिला है, लोगों की सोच में बदलाव आया है। हरियाणा जैसे राज्य में जहां बेटियों की संख्या में भारी गिरावट आई थी वहाँ की स्थिति में काफी सुधार हुआ है, आशा कर सकते हैं कि इसी प्रकार ज़ोर-शोर से यह अभियान चलता रहा हो भविष्य में और भी अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे।
हमें अपने-आप को पूछना पड़ेगा की हम जो कर रहे, क्या वो सही है? समाज की ये जो पुरानी सोच रही है कि बेटी बोझ होती है वो सोच खतम करने की जरूरत है क्यूंकी आज हर घटनाएं बताती हैं की बेटी बोझ नहीं, बेटी ही तो पूरे परिवार की आन-बान-शान है।
हमें अपनी बेटियों पर गर्व होता है जब हमें ये पता चलता है की अन्तरिक्ष यात्रा पूरी करके भारत की बेटी वापस आई है, हमें गर्व होता है अपनी बेटियों पर जब यह सुनते हैं की ओलंपिक में हमारी बेटियों ने सबसे ज्यादा पदक जीते हैं और हमें गर्व होता है बेटियों पर जब वो आसमान में हवाई जहाज तक चलातीं हैं। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां हमारी बेटियों ने अपना लोहा ना मनवाया हो।
समाज में ऐसे लोग भी है जो ये मानते हैं कि बेटा है तो बुढ़ापे में काम आएगा, लेकिन आज स्थिति कुछ अलग ही है। आए दिन हम ऐसे परिवार देखते हैं जहां बेटे अपने बूढ़े माप-बाप को वृद्धाआश्रम में छोड़ आते हैं, और वैसे भी परिवार देखते हैं कि एक बेटी अपने बूढ़े मां-बाप की सेवा के लिए विवाह तक नहीं करती, रोजगार कर अपने माँ-बाप का सहारा बनती है।
सदियों से समाज में जो सोच बनी है, ये जो विकृति घर कर गई है, उस विकृति से हमें बाहर आना है। हम ऐसा समाज देखना चाहते हैं जहां बेटी पैदा हुई तो पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी जाए, जश्न मनाया जाए।
एक बार फिर से बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ के दृढ़ संकल्प के साथ मैं अपनी वाणी को यहीं विराम देता हूँ, बहुत बहुत धन्यवाद!