प्राकृतिक आपदा निबंध | Natural Disaster Hindi Essay
प्रकृति का विनाशक रूप हमें प्राकृतिक आपदा के समय देखने को मिलता है। प्रकृति किसी ना किसी रूप में धरती पर विनाश भी लेकर आती है जो भारी मात्रा में जीवसृष्टि को प्रभावित करता है। आज हम ऐसी ही प्राकृतिक आपदाओं के बारे में हिन्दी निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं।
प्राकृतिक आपदा पर संक्षिप्त निबंध (150 शब्द)
प्राकृतिक आपदाएं अर्थात प्रकृति के द्वारा सर्जित विपत्तियाँ जो मानव जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करतीं हैं। इन आपदाओं में मुख्य रूप से बाढ़, भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी फटना, अकाल, सूखा, भूस्खलन, हिमस्खलन, तूफान, आँधी और चक्रवात आदि शामिल हैं।
प्राकृतिक आपदाओं पर मानव का कोई अंकुश नहीं है और ना ही ऐसी आपदाओं के आने का कोई पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है जिसके कारण इन आपदाओं के कारण भारी मात्रा में लोगों की मृत्यु होती है, उनके माल-सामान को नुकसान पहुंचता है। ऐसी आपदाओं के कारण धरती पर निवास कर रही अन्य जीवसृष्टि का भी नाश होता है।
कुछ प्राकृतिक आपदाएं मानव सर्जित हैं और कुछ आपदाएं प्रकृति के नियम के अनुसार हैं। ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए हर देश में आपदा प्रबंधन गठित किया गया है जो प्रभावित लोगों के जीवन को बहाल करने, उन्हें बचाने का कार्य करता है। सावधानी और समझदारी ही हमें प्राकृतिक आपदाओं से बचा सकती है।
प्राकृतिक आपदा पर निबंध (300 शब्द)
प्रकृति से खिलवाड़ का ही नतीजा है की आज धरती पर पूरी जीव सृष्टि को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण मानव जीवन तो प्रभावित होता ही है साथ ही अन्य जीव सृष्टि को भी इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी का फटना,सुनामी, बादल फटना, चक्रवात, तूफान, हिमस्खलन,भूस्खलन, सूखा, महामारी आदि ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ हैं जिनसे सदियों से धरती की जीवसृष्टि त्रस्त है। आए दिन ऐसी आपदाएँ हमारे जीवन को प्रभावित करतीं रहतीं हैं।
प्राकृतिक आपदाओं के कारण कुछ मानव सर्जित हैं और कुछ प्रकृति के नियमों के अनुसार हैं। इन सभी आपदाओं को रोका नहीं जा सकता क्यूंकी प्रकृति सृजन भी करती है और विनाश भी। प्राकृतिक आपदाओं से हम केवल अपने जान-माल का संरक्षण कर सकते हैं और उसके प्रभाव से स्वयं को बचा सकते हैं।
दुनिया भर के देशों ने प्राकृतिक आपदा प्रबंधन का गठन अपने-अपने देशों में किया है जो ऐसी आपदाओं के समय लोगों को रक्षण प्रदान करता है। भारत देश में भी प्राकृतिक आपदा प्रबंधन का गठन किया है जिसका उद्देश्य इन आपदाओं के समय लोगों के जान-माल का रक्षण करना है।
प्राकृतिक आपदाओं के कारण कुछ मानव सर्जित भी हैं लगातार जंगलों की कटाई, बढ़ता प्रदूषण, खनन, नदियों के बहाव में हस्तक्षेप आदि से हमने प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाया है जिसके कारण ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ीं हैं।
कुछ प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाकर बचा जा सकता हैं जैसे की तूफान, चक्रवात, तेज वर्षा लेकिन कुछ आपदाएँ ऐसी हैं जिनके बारे में पूर्वानुमान नहीं लगा सकते जैसे की भूकंप, सुनामी, बादल फटना, हिमस्खलन, सूखा,महामारी आदि।
प्राकृतिक आपदाएँ प्रकृति का एक हिस्सा हैं अतः मानव का इस पर कोई बस नहीं है, यदि हम प्रकृति के कार्यों में अपना हस्तक्षेप बंद करें तो काफी हद तक हम इन आपदाओं को रोक सकते हैं, साथ ही साथ ऐसी आपदाओं का पूर्वानुमान लगाकर हम अपने जान-माल को बचा सकते हैं।
प्राकृतिक आपदा पर विस्तृत निबंध (1300+ शब्द)
प्रस्तावना
प्रकृति यदि सृजन करती है तो प्राकृतिक आपदाओं को लाकर विनाश भी करती है। प्राकृतिक आपदा उसे कहते हैं जब प्रकृति अपना रौद्र रूप लेकर धरती पर तबाही मचा देती है और मानव जीवन के साथ-साथ अन्य जीव सृष्टि को प्रभावित करती है। इन आपदाओं के कारण लोगों के जान-माल का बहुत नुकसान होता ही है साथ साथ प्राकृतिक आपदा से प्रभवित देश को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है।
प्राकृतिक आपदाएँ कुछ दशकों से बढ़ीं हैं जिनका मुख्य कारण मानव का प्रकृति से खिलवाड़ है। हमने जंगलों विनाश किया है, पहाड़ों को नष्ट किया है, खनन कर धरती को खोखला कर दिया है, प्रदूषण फैलाकर जमीन, जल, हवा को दूषित कर दिया है इन सभी कारणों की वजह से प्रकृति का संतुलन बिगड़ा है जिसका परिणाम प्राकृतिक आपदाओं के रूप में हमें भुगतना पड़ रहा है।
प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार और कारण
प्राकृतिक आपदा कोई एक नहीं बल्कि प्रकृति अलग-अलग रूप में विनाश करती है। धरती पर प्राकृतिक आपदाओं का आना सामान्य है क्यूंकी यह प्रकृति का एक हिस्सा है। कुछ मुख्य प्राकृतिक आपदाओं का सामना हमें आए दिन करना पड़ता है।
बाढ़ – जब अधिक वर्षा के कारण नदियों का जल स्तर बढ़ जाता है तब बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है। भारत में हर साल बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा का हमें सामना करना पड़ता है। बाढ़ का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है अतः इसके प्रभाव से लोगों की जान तो बचाई जा सकती है लेकिन फिर भी भारी मात्रा में बाढ़ के कारण लोगों को जान-माल दोनों का नुकसान उठाना पड़ता है।
बाढ़ के कारण हर साल हजारों लोग बेघर हो जाते हैं, उन्हें आर्थिक समस्याएँ झेलनी पड़तीं हैं। बाढ़ के कारण किसी भी देश को बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। नदियों के बहाव को रोककर, उस पर बांध बनाकर और उसके बहाव को बदलकर कई बार हम मनुष्य ही बाढ़ के आने का कारण बनते हैं।
भूकंप – धरती के निचले भाग में जब कंपन्न उत्पन्न होता है तब धरती की सतह हिलने लगती है और होता है महा विनाश। जहां भी भूकंप आता है वहाँ भारी विनाश होता है। भूकंप प्राकृतिक आपदा का सबसे विनाशक रूप है। भूकंप की वजह से बड़े-बड़े मकान व इमारतें धराशायी हो जातीं हैं। हजारों लोगों की मृत्यु इस आपदा के कारण हो जाती है। जहां भी भूकंप का प्रभाव होता है वहाँ सिर्फ विनाश ही देखने को मिलता है।
भूकंप का पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता अतः इससे बचने के लिए पूर्व आयोजन नहीं कर सकते। परिणाम स्वरूप भारी जान-माल का नुकसान इस प्राकृतिक आपदा के कारण होता है।
सुनामी – समुद्र की तल में जब भूकंप आता है तब समुद्र मे तीव्र हल-चल उत्पन्न होती है जो एक भीषण सुनामी का रूप धारण कर लेती है। समुद्र में उत्पन्न सुनामी के कारण ऊंची-ऊंची लहरें उठतीं हैं और आस-पास के समुद्री इलाकों को तबाह कर देतीं हैं। दुनिया ऐसी विनाशकारी सुनामी की साक्षी रही है जिसमे भारी मात्रा में लोगों को जान माल का नुकसान उठाना पड़ा।
December 26, 2004 के दिन सुमात्रा-अंडमान में आई भयंकर सुनामी ने 2 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी। ऐसी ही अनेक विनाशक सुनामी का इतिहास भरा पड़ा है।
तूफान और चक्रवात – समुद्र में आने वाले तूफान और चक्रवात की वजह से दुनिया के कई शहरों में हर साल विनाशक बाढ़ आती है। इस प्रकार के तूफान और चक्रवात के कारण बिन मौसम भारी बरसात होती है जिसके कारण बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तेज हवाओं के कारण भारी मात्रा में सर्वनाश होता है। भारत में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में हर साल तूफान और चक्रवात आते हैं परिणाम स्वरूप भारी मात्रा में जान माल का नुकसान उठाना पड़ता है।
हिमस्खलन – हिमस्खलन अर्थात बर्फ का तूफान। बर्फीले प्रदेश में अक्सर हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ता है। बर्फीले तूफान में ऊंचे-ऊंचे हिम पहाड़ों से बर्फ नीचे की ओर गिरती है और एक बर्फ के तूफान का रूप धारण कर लेती है। भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में हर साल ठंड के मौसम में बर्फीले तूफान की घटनाएँ देखने को मिलतीं हैं।
भूस्खलन – ऊंची चट्टानों, पहाड़ों और भूभागों से अक्सर भूस्खलन की स्थिति का निर्माण होता है जिसमे इन ऊचाई वाले स्थानों से भरी मात्रा में मिट्टी और पत्थरों का नीचे की तरफ स्खलन होता है जिसकी वजह से नीचे रह रहे लोगों को जान और माल दोनों का नुकसान होता है। 2014 में भारत के महाराष्ट्र के मालिन गाँव में भूस्खलन की घटना घटित हुई थी जिसमे कुल 151 लोगों की मृत्यु हुई थी।
बादल फटना – जब बरसात के बादल अचानक से भारी मात्रा में बरसात कर देते हैं तो इसे बादलों का फटना कहते हैं। बादल फटने के कारण बिलकुल कम समय में तेज बारिस होती है जिसके कारण बाढ़ की स्थिति बन जाती है। भारत के उत्तराखंड में हर साल बादल फटने की घटनाएँ देखने को मिलतीं हैं। 2013 में केदारनाथ में बादल फटने के कारण कुल 6000 लोगों की मृत्यु हुई थी और भारी मात्रा में आर्थिक नुकसान हुआ था।
ज्वालामुखी फटना – विश्व के कई देश हैं जहां बड़ी-बड़ी ज्वालामुखी विनाश का कारण बनतीं हैं। इन ज्वालामुखियों से निकलने वाला गरम लावा आस-पास के इलाकों को तबाह कर देता है। ज्वालामुखी के फटने से कई तरह की जहरीली गैसें वातावरण में घुलतीं है और वातावरण को प्रभावित करतीं हैं।
सूखा और अकाल पड़ना – सूखा और अकाल तब पड़ता है जब बरसात के मौसम में भी बिलुकल बरसात ना हो। भारत के कई राज्य ऐसे हैं जो सूखे और अकाल से ग्रसित हैं, जहां कई सालों से बरसात नहीं हुई है। सूखे और अकाल के कारण लोगों को पीने का पानी नहीं मिलता, भुखमरी की स्थिति खड़ी हो जाती है, फसल का नाश होता है और हरी भरी भूमि भी बंजर हो जाती है। सूखे और अकाल के पीछे कहीं ना कहीं मानव जिम्मेदार है जिसने जंगलों को काटकर बरसात में अवरोध उत्पन्न किया है।
महामारी फैलना – महामारी अर्थात अनेक प्रकार की बीमारियाँ जो अधिक संख्या में एक साथ लोगों को प्रभावित करतीं हैं। ऐसी महामारी भी एक प्राकृतिक आपदा है। महामारी फैलने के कारण हजारों की संख्या में हर साल लोगों की मृत्यु हो जाती है। ऐसी कई बीमारियाँ हैं जो हवा की तरह फैलतीं हैं और एक साथ सैकड़ों लोगों की जान ले लेतीं हैं।
प्राकृतिक आपदा प्रबंधन
प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता अतः ऐसी आपदाओं से जान-माल का कम से कम नुकसान हो इसलिए प्राकृतिक आपदा प्रबंधन का गठन किया गया है जिसका काम ऐसी आपदाओं का सामना कर रहे लोगों की मदद करना है और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से कम से कम नुकसान हो ऐसा प्रयत्न व योजनाओं के बारे में रूप रेखा तैयार करना है।
आपदा प्रबंधन प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना, उनका जीवन फिर से बहाल करना, जरूरी चीज-वस्तुओं को लोगों तक पहुंचाना, फंसे हुये लोगों को बचाना आदि कठिन कार्य करता है।
प्राकृतिक आपदा से बचने के उपाय
प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए सावधानी और समझदारी दोनों जरूरी हैं क्यूंकी ऐसी आपदाओं का पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता, ये आपदाएँ कभी भी किसी भी क्षण आ सकतीं हैं।
- नदियों के किनारे निवास नहीं करना चाहिए क्यूंकी बाढ़ सबसे पहले किनारे रह रहे लोगों को प्रभवित करती है, यदि बाढ़ आने की स्थिति हो तो ऐसी जगह से पलायन करना ही उचित है।
- भूकंप का अनुमान नहीं लगा सकते, अतः मकानों का निर्माण भूकंप निरोधी होना चाहिए।
- आपदा की स्थिति में एक आपातकालीन किट को तैयार करें जिसमें महत्वपूर्ण दस्तावेजों, महत्वपूर्ण फोन नंबरों की एक सूची, जरूरी दवाएं,पानी, एक टॉर्च, माचिस, कंबल और कपड़े आदि को रखें जिससे की आपको किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े।
- यदि आप एक तटीय क्षेत्र में रहते हैं, तो अपने घर की खिड़कियों को कवर करने और बाहरी वस्तुओं को सुरक्षित करने के लिए योजना बनाएं। यदि कोई तूफान आ रहा है, तो सूचित रहने के लिए एक स्थानीय टीवी या रेडियो स्टेशन को सुनें और स्थान खाली करने के लिए तैयार रहें।
- बाढ़ कहां हो रही है, इसकी जानकारी के लिए टीवी या रेडियो सुनें। अपने क्षेत्र में बाढ़ की चेतावनी के रूप में, आपको घर खाली करने की सलाह दी जा सकती है; इस मामले में, तुरंत ऐसा करें और तुरंत उच्च स्थान की तलाश करें।
उपसंहार
प्राकृतिक आपदाओं पर मानव का कोई नियंत्रण नहीं है अतः इसके प्रभाव से हमें बचने की जरूरत है। ऐसी कई आपदाएँ हैं जो मानव सर्जित भी हैं अतः जितना कम प्रकृति के कार्यों में हम हस्तक्षेप करेंगे उतना हम ऐसी आपदाओं से बच सकेंगे।
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