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NPA (एनपीए) क्या है जानिए हिन्दी में

हमारे देश के बैंकिंग क्षेत्र में आज कल एक शब्द काफी सुनने में आ रहा है – NPA (एनपीए) जिसकी वजह से कई बैंकों को करोड़ो का नुकसान हो रहा है। तो ये NPA क्या होता है और किस तरह से यह हमारी बैंकों को प्रभवित करता है, आज हम आपको बड़ी आसान भाषा में इसका मतलब समझाने जा रहे हैं।

NPA का क्या मतलब होता है?

NPA का full form होता है – Non-Performing Asset यानि की ऐसा loan जिसमें से बैंक को कोई फायदा नहीं होता, कोई व्याज नहीं मिलती और वो loan बैंक के लिए non performing बन जाती है।

जब बैंक किसी व्यक्ति या कंपनी को loan देता है तो वह व्यक्ति या कंपनी उसे loan की रकम ब्याज के साथ चुकाते हैं। ये तो अच्छी बात है और बैंक इसके जरिये अच्छी ख़ासी कमाई करतीं हैं।

अब समस्या तब खड़ी होती है जब कोई व्यक्ति या कंपनी बैंक से loan लेता है तो कुछ किश्तें (installment) चुकाता है और उसके बाद किश्तें चुकाना बंद कर देता है, ब्याज भी देना बंद कर देता है। तो बैंक एक निश्चित समय सीमा के अंतराल में उस loan को NPA घोषित कर देता है। मतलब की यह loan बैंक के लिए कोई Perform नहीं कर रहा है। जब बैंक का पैसा इस तरह की Loan में फंस जाता है तो इस प्रकार के Loan को NPA की श्रेणी में रखा जाता है।

नियमानुसार अगर किसी बैंक को Loan की Installment, ब्याज और मूलधन 90 दिन के अंतराल में नहीं मिलता है तो उसे NPA में दाल दिया जाता है। आज हमारे देश की कई बैंक हैं जो इस NPA की परेशानी का सामना कर रहीं हैं।

साधारण से शब्दों में कहें तो जब कोई Loan बैंक को कुछ कमाकर नहीं देता तो वो loan NPA बन जाता है।

NPA बढ्ने के कारण

कई बार Loan लेने वाले व्यक्ति या कंपनी के बारे में पूरी जानकारी लिए बिना ही Loan दे दिया जाता है, कई बार Political साँठ-गांठ के चलते या जान पहचान से व्यक्ति या कंपनी को बिना जरूरी कार्यवाही के लोन दे दिया जाता है। जब इस प्रकार के Loan दिये जाते हैं तब NPA होने का खतरा बढ़ जाता है।

भारत की ऐसी कई कंपनी हैं जिनहोने करोड़ो का loan बैंकों से ले रखा है और वो Loan अब NPA घोषित हो चुका है। ऐसे कई लोग हैं जो करोड़ो का कर्जा लेकर विदेश भाग गए हैं, ऐसे लोगों के द्वारा ली गयी loan अब बैंक के लिए NPA बन गयी है।

बैंकों के बीच आपसी स्पर्धा के कारण भी कई बार बैंक ऐसी लोगों को बिना सोचे-समझे लोन दे देतीं हैं जो उसे चुकाने मेन सक्षम नहीं है।

NPA के प्रकार

NPA को तीन भागों में बांटा गया है:

1. Substandard assets:  12 महीने का उस से कम समय तक अगर कोई Loan NPA बना रहता है तो उसे Substandard assets की श्रेणी में रखा जाता है।

2. Doubtful assets: अगर कोई लोन 12 महीने से अधिक NPA रहता है तो उसे Doubtful assets की श्रेणी में रखा जाता है।

3. Loss assets: जब बैंक को यह सुनिश्चित हो जाता है की दी गयी इस Loan की recovery नहीं हो पाएगी तो उस NPA को Loss assets की श्रेणी में डाल  दिया जाता है।

NPA का बैंक पर असर

अगर आप हर किसी को उधार दिये जा रहे हैं और बदले में आपको ना पैसा मिल रहा है और ना ब्याज मिल रही है तो एक दिन ऐसा आएगा की आपकी तिजोरी खाली हो जाएगी। उसके बाद आप इस लायक ही नहीं बचेंगे की किसी की कर्जा दे सकें। आपको अपना खर्चा चलाना मुश्किल हो जाएगा।

बस यही हाल बैंकों का होता है जब NPA की लगातार मार उन पर पड़ती है। बैंक के Stock market में शेयर गिरने लगते हैं और शेयरधरकों को करोड़ो का नुकसान उठाना पड़ता है। जब ऐसी नोबत आती है तो बैंक अपने ग्राहकों को पैसा निकालने पर पाबंदी लगा देती है और एक limit के अंदर ही पैसा निकालने की अनुमति मिलती है। ऐसा एक-दो बैंक के ग्राहकों के साथ हो चुका है।

यही नहीं बैंक अपने ग्राहकों को देने वाली ब्याज दर भी कटौती कर नुकसान की भरपाई की कोशिश करती है।

NPA के कारण बैंकों को काफी घाटा उठाना पड़ता है और एक समय ऐसा भी आता है जब बैंक बंद होने की कगार पर खड़ी हो जाती है।

संक्षेप में

भारत सरकार बैंकों को NPA से बचाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, विशेष रूप से देश में PSB की गिरावट को देखते हुए। हालांकि, NPA के लिए कठोर कानूनों के लिए अभी भी एक मजबूत आवश्यकता महसूस की जा रही है। जो बड़े – बड़े कर्जे लेकर बैठे हैं उनके लिए अलग से कानून बनाने की जरूरत है। इसके अलावा, किसी भी व्यक्ति या कंपनी को लोन देने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी बैंकों को जरूर लेनी चाहिए। बैंकों पर से राजनीतिक हस्तक्षेप बंद होना चाहिए, ऐसे कई कदम अगर उठाए जाएँ तो NPA को कम किया जा सकता है।

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