हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम का पर्व है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई मे राखी बांधती है और उसके लिए मंगल कामना करती है, भाई भी अपनी बहन की रक्षा करने का प्रण लेता है।
रक्षाबंधन के त्योहार को मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएँ हैं जो की हमें राखी के महत्व को समझातीं हैं। रक्षाबंधन की कथाओं में कोई भी सगा भाई-बहन नहीं है लेकिन फिर भी उस रक्षा सूत्र के महत्व को हम इन कथाओं के माध्यम से अवश्य समझ सकते हैं।
रक्षाबंधन को मनाने के पीछे इन छ कथाओं के बारे में आपको अवश्य जानना चाहिए।
1# माता लक्ष्मी ने बांधी राजा बली को राखी
राजा बली का नाम दान वीरों में शामिल है। राजा बली का आधिपत्य तीनों लोकों में था। एक बार राजा बली ने एक यज्ञ का आयोजन किया, इस यज्ञ में उन्होने खूब दान किया।
भगवान श्री हरी विष्णु इस यज्ञ में वामन का रूप धरकर आए और दान में उन्होने तीन पग भूमि मांगी। राजा बली बड़े आश्चर्य के साथ उन्हें तीन पग भूमि देने के लिए तैयार हुये। इधर वामन अवतार धरकर आए श्री विष्णु ने तीनों लोकों को अपने दो पग से माप लिया।
अब तीसरा पग वो कहाँ रखें इसके बारे में राजा बली को पूछा। राजा बली ने हाथ जोड़ कर कहा- भगवन अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रखें, इस तरह से मेरा तीन पग भूमि देने का संकल्प भी पूरा हो जाएगा।
इस प्रकार वामन अवतार श्री विष्णु ने तीनों लोकों को दान के रूप मे ले लिया और राजा बली को अब पाताल लोक में जाना था। पाताल जाने से पूर्व राजा बली ने श्री विष्णु से एक प्रार्थना की – हे प्रभु मैंने अपना सब कुछ दान में दे दिया, क्या आप मुझपर एक कृपा करेंगे, क्या आप भी मेरे साथ पाताल में निवास करेंगे।
भगवान विष्णु राजा बली की इस प्रार्थना को स्वीकार कर लेते हैं और उनके साथ पाताल रहने के लिए चले जाते हैं।
इधर माता लक्ष्मी श्री विष्णु के पाताल जाने से व्यथित हो जातीं हैं और उन्हें पुनः वापस लाने के लिए भेष बदलकर राजा बली के पास जातीं हैं। माता लक्ष्मी राजा बली को एक रक्षा सूत्र बांधतीं हैं। राजा बली बदले में माता लक्ष्मी से कुछ मांगने के लिए कहता है।
तब माता लक्ष्मी राजा बली से श्री विष्णु को पाताल से ले जाने के लिए कहतीं हैं। राजा बली इस बात को टाल नहीं सकता था, इसलिए उसने माता लक्ष्मी को इसकी अनुमति दे दी। जाते समय श्री विष्णु ने राजा बली को वरदान दिया की वो हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे।
2# द्रौपदी और श्री कृष्ण का रक्षाबंधन
रक्षाबंधन से जुड़ा एक सुंदर दृष्टांत हमें महाभारत काल में मिलता है। श्रीकृष्ण और द्रौपदी दोनों सगे भाई-बहन नहीं थे लेकिन राखी का महत्व हमें उनकी इस कथा से अवश्य पता चलता है।
अपने नए राज्य इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ करा रहे थे। इस यज्ञ में आस-पड़ोश के राजा सम्मिलित हुये थे। इसी यज्ञ में श्रीकृष्ण और शिशुपाल भी थे। शिशुपाल ने इस यज्ञ के दौरान श्रीकृष्ण को बहुत ही अपशब्द कहे। और अंत में जब उसके अपशब्द 100 के पार पहुँच गए तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक धड़ से अलग कर दिया।
सुदर्शन चक्र के कारण श्रीकृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा, यह देख द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथों पर बांध दिया। श्रीकृष्ण ने द्रौपदी का यह स्नेह देख कर वचन दिया की वो एक दिन इस साड़ी के एक-एक धागे का ऋण अवश्य चुकाएंगे।
जुए में जब पांडव अपना सब कुछ हार गए तब उन्होने द्रौपदी को भी दाव पर लगा दिया और वो उसे भी जुए में हार गए। तब कौंरव भाई में से एक दुशासन द्रौपदी को भरी सभा में घसीटकर ले आता है और उसका चीर हरण करने की कोशिश करता है।
अपनी लाज बचाने के लिए द्रौपदी अंत में श्रीकृष्ण को पुकारती है और अपने वचन से बंधे श्रीकृष्ण तुरंत वहाँ प्रकट होते हैं और द्रौपदी के चीर को इतना बढ़ा देते हैं की दुशासन थककर गिर पड़ता है।
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने अपने हाथ में बांधे उस साड़ी के कपड़े का ऋण द्रौपदी की लाज बचाकर चुकाया। कहते हैं जब द्रौपदी ने वो साड़ी का पल्लू श्रीकृष्ण के हाथों में बांधा था उस समय श्रावण का महिना था।
3# युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को बांधी राखी
महाभारत युद्ध के समय युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण के पास जाकर कहते हैं की – हे कान्हा इस युद्ध में आने वाले सभी संकटों से कैसे विजय प्राप्त करें, कोई उपाय बताएं ” तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को अपने सभी सैनिकों को रक्षा सूत्र बांधने का परामर्श दिया।
युधिष्ठिर ने ठीक वैसा ही किया और अपने सभी सैनिकों के हाथों में रक्षासूत्र बांध दिया और अंत में उनकी महाभारत के युद्ध में विजय हुई।
ऐसा कहा जाता है यह घटना सावन के महीने में पुर्णिमा तिथि को ही घटित हुई थी। इसलिए रक्षाबंधन के समय सैनिकों को राखी बांधी जाती है।
4# देवी सचि ने बांधी पति इन्द्रदेव को राखी
वृत्तासुर नामक दैत्य से युद्ध करने के पूर्व देवराज इन्द्र की पत्नी सचि ने मंत्रोच्चार से एक विशेष रक्षासूत्र तैयार किया था। वो रक्षासूत्र सचि ने अपने पति इंद्रदेव की रक्षा करने के लिए उनके हाथों में बांध दिया।
इस रक्षासूत्र के कारण इंद्रदेव ने वृत्तासुर को युद्ध में पराजित किया। ऐसा कहा जाता है, सचि ने वो रक्षासूत्र श्रावण मास की पुर्णिमा को बांधा था।
5# हुमायूँ और रानी कर्णावती का दृष्टांत
मुग़ल बादशाह हुमायूँ जब चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करने के लिए आ रहा था तब चित्तौड़ की विधवा रानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा का वचन ले लिया। उसके बाद हुमायूँ ने चित्तौड़ पर आक्रमण करने का विचार ही त्याग दिया। हुमायूँ ने इसके बाद बहादुर शाह के आक्रमण से भी चित्तौड़ की रक्षा की।
6# सिकंदर और राजा पुरू का दृष्टांत
पूरे विश्व को जीतने निकला सिकंदर जब भारत आया तो उसका सामना परम प्रतापी राजा पुरू से हुआ। राजा पुरू ने युद्ध में सिकंदर को बुरी तरह से मात दी। इसी दौरान सिकंदर की पत्नी को रक्षाबंधन के बारे में पता चला।
सिकंदर की पत्नी ने राजा पुरू को राखी भेजकर अपने पति सिकंदर को ना मारने का वचन ले लिया। राजा पुरू ने राखी का वचन निभाया और सिकंदर से युद्ध के समय जब उन्होने सिकंदर को मारने के लिए हाथ उठाया तो उनकी नज़र हाथ में बंधी उस राखी पर गयी और उन्होने अपने आपको रोक लिया। इसके बाद राजा पुरू को बंदी बना लिया गया।
दूसरी तरफ जब सिकंदर को इस राखी के बारे में पता चला तो उसने भी अपनी महानता दिखाई और राजा पुरू को मुक्त कर उनका राज्य भी उन्हें वापस कर दिया।
रक्षाबंधन से जुड़ी इन कथाओं और दृष्टांतों से हमें राखी का महत्व समझ में आता है और इस राखी में कितनी शक्ति होती है इसका एहसास हम कर सकते हैं।
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